कुंडली में शुभ योग
ज्योतिष शास्त्र में कुंडली में शुभ और अशुभ योग का बड़ा महत्व है। मनुष्य का व्यवहार, कार्य और उसका जीवन कुंडली के शुभ और अशुभ योगों से प्रभावित होता है। कुंडली में शुभ योग होने पर जातक को अपने कार्यों में सफलता मिलती है तो वहीं अशुभ योग के कारण उसे अनेक प्रकार के दुखों का सामना करना पड़ता है। कुंडली में बनने वाले अशुभ योगों में से एक है ‘विष योग’। विष योग को पुनर्फू योग भी कहते हैं।
कब बनता है विष योग -:
शनि और चंद्रमा की जब युति होती है तब विष योग बनता है। कुंडली में विष योग शनि और चंद्रमा के कारण बनता है। चंद्रमा के लग्न स्थान में एवं चन्द्रमा पर शनि की 3,7 अथवा 10वें घर से दृष्टि होने की स्थिति में इस योग का निर्माण होता है।
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शनि पुष्य नक्षत्र
कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चन्द्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र का रहे अथवा चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों अपने-अपने स्थान से एक दूसरे को देख रहे हों तो तब भी विष योग की स्थिति बन जाती है।
यदि कुण्डली में आठवें स्थान पर राहु मौजूद हो और शनि (मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक) लग्न में हो तो विष योग का निर्माण होता है।
क्या आती हैं समस्याएं
जन्मकुंडली में विष योग के कारण व्यक्ति का मन दुखी रहता है, परिजनों के निकट होने पर भी उसे अकेलापन महसूस होता है, जीवन में सच्चे प्रेम की कमी रहती है, माता प्यार चाहकर भी नहीं मिल पाता या अपनी ही कमी के कारण वह ले नहीं पाता है। जातक गहरी निराशा में डूबा रहता है, मन कुंठित रहता है। माता के सुख में कमी के कारण व्यक्ति उदास रहता है।
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पूर्ण विष योग
पूर्ण विष योग माता को भी पीड़ित करता है। शनि तथा चन्द्रमा का किसी भी प्रकार से सम्बन्ध माता की आयु को भी कम करता है अर्थात माता का पीड़ित होना या माता से पीड़ित होना निश्चित है। विष योग मृत्यु, डर, दुख, अपमान, दरिद्रता, विपत्ति, आलस और कर्ज जैसे अशुभ योग उत्पन्न करता है।
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क्या हैं उपाय
विष योग के नकारात्मक प्रभावों का कम करने के लिए भगवान शिव की आराधना करें। नियमित ‘ऊँ नमः शिवाय’ मन्त्र का सुबह-शाम कम से कम 108 बार करने से लाभ होगा। ‘महा म्रंत्युन्जय मन्त्र’ का जाप भी लाभकारी है। संकटमोचक हनुमान जी की उपासना करें और शनिवार के दिन शनि देव का संध्या समय तेलाभिषेक करने से भी पीड़ा कम हो जाती है।
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