तृतीया तिथि पर मृत्यु होने वाले पूर्वजों और संबंधियों का श्राद्ध तृतीया तिथि पर संपन्न किया जाता है। इसके अंतर्गत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष तृतीया को मृत्यु को प्राप्त हुए पूर्वजों का श्राद्ध करने का विधान है। तृतीया श्राद्ध को तीज श्राद्ध भी कहा जाता है। तृतीया श्राद्ध 8 सितंबर, 2017 को है।
पितृ पक्ष श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध है और इसे संपन्न करने का शुभ समय कुटुप मुहूर्त और रोहिणा है। मुहूर्त के शुरु होने के बाद आप अपराह्रन काल के खत्म होने के मध्य किसी भी समय श्राद्ध क्रिया संपन्न कर सकते हैं। श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है।
कैसे करें तृतीया श्राद्ध
तृतीया श्राद्ध के दिन अपने घर पर दो ब्राहृमणों को बुलाकर उनका सत्कार करें। अपने मित्रों के निमित्त काली मिर्च युक्त लौकी की खीर, हरी सब्जी, पूड़ी, बादाम का हल्वा और तुलसी पऋ रखकर भागवत गीता के पंचम अध्याय का पाठ करें।
पूजन में तिल के तेल का दीपक जलाएं और मिश्री का भोग लगाएं। पूजन के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें वस्त्र, हार और कांस्य के बर्तन भेंट करें। अब उन्हें ईलायची और लौंग खिलाकर दक्षिणा दें। चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लें।
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तृतीया श्राद्ध के नियम
तृतीया श्राद्ध को श्राद्ध कर्म के बाद कम से कम दो ब्राह्मणों को भोजन अवश्य करवाएं। अगर एक ही ब्राहम्ण है तो उनके साथ दूसरे ब्राह्मण के रूप में दामाद, नाती या भांजे को भोजन करवाएं।
– भोजन के पश्चात् ब्राहृमण को वस्त्र और सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर विदा करें और उनसे आशीर्वाद लें।
– श्राद्ध के संपन्न होने के बाद कौवे, गाय और कुत्ते या किसी भिखारी को श्राद्ध का भोजन खिलाएं।
– अगर तृतीया श्राद्ध को आपसे कोई अशुद्ध कम हो जाए तो पितृ पक्ष में ब्राहृमण को बुलाकर दूब, तिल, कुशा, तुलसीदल, फल, मेवा, दाल-भात, पूरी और पकवान सहित अपने दिवंगत पितरों का नाम लेकर श्राद्ध करें।
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