आज के समय में हर कोई धन, वैभव, समृद्धि, सुख और संपत्ति की कामना करता है। इन कामनाओं को पूरा करने के लिए शास्त्रों में अनेक देवी-देवताओं के पूजन और व्रत का विधान है जिनमें से एक है वरलक्ष्मी व्रत। वरलक्ष्मी में वर का अर्थ है वरदान और लक्ष्मी का अर्थ है वैभव और संपत्ति। इस व्रत को करने से परिवार में सभी तरह के सुख और संपन्नता सहज ही आ जाती है।
वरलक्ष्मी का स्वरूप
महालक्ष्मी का ही स्वरूप है वरलक्ष्मी देवी। इनका जन्म दूधिया महासागर से हुआ था जिसे क्षीर सागर भी कहा जाता है। वर लक्ष्मी का रंग दूधिया महासागर के रंग के रूप में वर्णित किया जाता है और वह रंगीन कपड़ों में सजी हुई होती हैं। मान्यता है कि वर लक्ष्मी वरदान देने वाली होती हैं और वो सच्चे मन से अपनी पूजा करने वाले भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। इसी कारण देवी के इस स्वरूप को वर और लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है।
वरलक्ष्मी पूजा 2018
श्रावण मास की शुक्ल पक्ष में एक सप्ताह पूर्व शुक्रवार को वरलक्ष्मी व्रत करने का विधान है। राखी और श्रावण पूर्णिमा से कुछ दिन पूर्व ही ये व्रत किया जाता है। इस व्रत की महिमा अत्यंत खास और महत्वपूर्ण मानी जाती है। जो कोई भी इस व्रत को करता है उसके घर से दरिद्रता का नाश होता है और घर-परिवार में सुख-शांति आती है।
वरलक्ष्मी व्रत पूजा मुहूर्त 2018
सिंह लग्न पूजा मुहूर्त : प्रात: 6 बजकर 9 मिनट से शुरु होकर सुबह 7 बजकर 51 मिनट पर समाप्त, अवधि : 1 घंटा 41 मिनट
वृश्चिक लग्न पूजा मुहूर्त : 12:16 से 14:32 तक, अवधि : 2 घंटे 16 मिनट
कुंभ लग्न पूजा मुहूर्त : 18:24 से 19:57 तक, अवधि : 1 घंटा 32 मिनट
वृषभ लग्न पूजा मुहूर्त : 23:07 से 25:05 तक, अवधि : 1 घंटा 58 मिनट
वरलक्ष्मी व्रत 2018
शास्त्रों के अनुसार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को वरलक्ष्मी जयंती मनाई जाती है। इस साल वरलक्ष्मी व्रत 24 अगस्त, 2018 को मनाई जाएगी जिसे वरलक्ष्मी जयंती भी कहा जाता है।
वरलक्ष्मी व्रत से मिलता है कैसा फल
धार्मिक मान्यता है कि विवाहित जोड़े को ये व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है। नारीत्व का व्रत होने के कारण सुहागिन स्त्रियां पूरे उत्साह के साथ इस व्रत को रखती हैं। इस व्रत को करने से सुख, संपत्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।
वरलक्ष्मी व्रत को रखने से अष्टलक्ष्मी पूजन जितना ही फल प्राप्त होता है। अगर दोनों पति-पत्नी मिलकर इस व्रत को रखें तो इसका फल दोगुना हो जाता है। कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य में इस व्रत को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।
वरलक्ष्मी व्रत की पूजन सामग्री
इस व्रत में पूजन के लिए आवश्यक सामग्री को पहले से ही एकत्र करके रख लें। इस सूची में उन वस्तुओं को शामिल किया गया है जो विशेष रूप से वरलक्ष्मी व्रत पूजा के लिए जरूरी होती हैं।
देवी वरलक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर, फूल माला, कुमकुम, हल्दी, चंदन का पाउडर, विभूति, शीशा, कंघी, आम पत्र, पुष्प, पान के पत्ते, पंचामृत, दही, केला, दूध, पानी, अगरबत्ती, मोली, धूप, कपूर, पूजा के लिए घंटी, प्रसाद, तेल का दीपक, अक्षत आदि।
वरलक्ष्मी व्रत की पूजन विधि
वरलक्ष्मी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई कर लें और स्नान आदि से निवृत्त होकर घर के पूजन स्थल को गंगाजल से साफ कर पवित्र कर लें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें।
मां वरलक्ष्मी की प्रतिमा को नए वस्त्र पहनाएं, जेवर और कुमकुम से सजाएं। इसके बाद एक पाटे पर गणेश जी की मूर्ति के साथ मां लक्ष्मी की मूर्ति को पूर्व दिशा में स्थापित करें और पूजन स्थल पर थोड़ा सा सिंदूर फैलाएं। एक कलश में जल भरकर उसे तांदूल पर रख दें और इसके बाद कलश के चारों तरफ चंदन लगाएं।
अब कलश के पास पान, सुपारी, सिक्का और आम के पत्ते डालें। एक नारियल पर चंदन, हल्दी, कुमकुम लगाकर उसे कलश पर रख दें। एक थाली लें और उसमें लाल रंग के वस्त्र, अक्षत, फल, पुष्प, दूर्वा, दीप, धूप आदि से मां लक्ष्मी की पूजा करें। मां की प्रतिमा के सामने बैठकर दीया जलाएं और वरलक्ष्मी व्रत की कथा करें। पूजन के समापन पर वहां उपस्थित लोगों को प्रसाद बांटें। इस दिन व्रती को निराहार रहना चाहिए। रात को आरती कर फलाहार लें।
वरलक्ष्मी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार मगध राज्य में कुंडी नाम का एक नगर था। कथानुसार कुंडी नगर का निर्माण स्वर्ग से हुआ था और इस नगर में एक ब्राह्मण कुल ही नारी चारुमति अपने परिवार के साथ रहती थी। चारुमति कर्त्तव्यनिष्ठ नारी थी जो अपने सास-ससुर की खूब सेवा करती थी और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर एक आदर्श नारी का जीवन जीती थी।
एक रात चारुमति के सपने में मां लक्ष्मी आईं और बोलीं कि वो हर शुक्रवार को उनके निमित्त मात्र वरलक्ष्मी व्रत किया करे। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हें मनवांछित फल की प्राप्ति होगी।
अगले दिन सुबह चारुमति ने सभी स्त्रियों को इस व्रत के बारे में बताया। पूजन के संपन्न होने पर सभी नारियां कलश की परिक्रमा करने लगीं, परिक्रमा करते समय नारियों के शरीर पर र्क स्वर्ण आभूषण सज गए।
उनके घर भी स्वर्ण के बनए और उनके यहां घोड़े, हाथी, गाय आदि पशु भी आ गए। सभी नारियों ने मां वरलक्ष्मी का धन्यवाद दिया और चारुमति की प्रशंसा की। कालांतर में यह कथा भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी। इस व्रत कथा को सुनने मात्र से ही मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
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