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हैरान कर देंगें तिरुपति बालाजी के ये रहस्‍य

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श्री वैंकटेश्‍वर मंदिर

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समुद्रतल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित तिरुमला की पहाड़ियों पर बना श्री वैंकटेश्‍वर मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले के तिरुपति में स्थित वेंकटेश्‍वर मंदिर भगवान विष्‍णु को समर्पित है। वेंकटेश्वर मन्दिर को दुनिया में सबसे अधिक पूजनीय स्थल कहा गया है। विश्‍व के सर्वाधिक धनी धार्मिक स्‍थानों में से एक यह स्‍थान भारत के सबसे अधिक तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है। इन्‍हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है। वैष्‍णव संप्रदाय से उत्‍पन्‍न इस मंदिर की महिमा का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। जो भक्त व श्रद्धालु वैकुण्ठ एकादशी के अवसर पर यहाँ भगवान के दर्शन के लिए आते हैं, उनके सारे पाप धुल जाते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि यहाँ आने के पश्चात् व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बन्धन से मुक्ति मिल जाती है। मंदिर के विषय में कई रहस्‍यात्‍मक कथाएं प्रचलित हैं। आइए जानते हैं तिरूपति मंदिर से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें –:

अचंभित रहस्‍य

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  • वेंकटेश्‍वर भगवान की प्रतिमा से जुड़ा अत्‍यंत ही अचंभित रहस्‍य है कि उनकी प्रतिमा का तापमान सदैव 110 फॉरेनहाइट रहता है और प्रतिमा को पसीना भी आता है जिसे पुजारी समय-समय पर पोंछते रहते हैं।
  • मंदिर के नियमों से जुड़ी एक अचंभित प्रथा है जिसके अनुसार मंदिर से 23 किमी दूर बसे गांव के लोग ही इसके गर्भगृह में प्रवेश कर सकते हैं तथा केवल इसी गांव से भगवान के लिए फल, फूल, प्रसाद, भोग आदि आता है।

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चमत्‍कार

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  • पचाई कपूर्रम को किसी साधारण प्रतिमा पर चढ़ाने से वह पत्‍थर तुरंत ही चटक जाता है लेकिन वेंकटेश्‍वर भगवान का चमत्‍कार ही है कि पचाई कपूर्रम को वेंकटेश्‍वर प्रतिमा पर चढ़ाने पर प्रतिमा पर इसका कोई असर नहीं होता है।
  • मंदिर में स्‍थापित मुख्‍य प्रतिमा का पीछे का हिस्‍सा सदा नम रहता है। ध्‍यानपूर्वक सुनने पर यहां सागर की उठती लहरों की आवाज स्‍पष्‍ट सुनाई देती है।

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महत्‍व

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  • कहा जाता है कि वेंकेटवर मंदिर के स्‍वामी की प्रतिमा पर लगे बाल असली हैं। ये बाल बहुत ही मुलायम है तथा कभी उलझते या झड़ते नहीं हैं।
  • मंदिर की मान्‍यता है कि यहां पर चढ़ाए गए फूलों और तुलसी पत्रों को भक्‍तों में न बांटकर मंदिर के पीछे बने कुएं में फेंक दिया जाता है। यही नहीं, इन पुष्पों तथा तुलसी के पत्तों को वापस मुड़कर देखा भी नहीं जाता है।

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