आज हम बात करेंगें भारतीय ज्योतिष को नाम और पहचान दिलाने वाले 19वीं सदी के महान प्रोफेसर बी.वी रमन की। बी.वी रमन का जन्म कर्नाटक में 8 अगस्त, 1912 को हुआ था। उनके दादाजी अपने समय के प्रसिद्ध ज्योतिषी हुआ करते थे और उनसे कई ब्रिटिश अधिकारी और राजा ज्योतिषीय सलाह के लिए आते थे। वह बी.वी रमन के शिक्षक भी थे और उन्हीं के नेतृत्व में रमन जी ने अपने बचपन में ही श्लोक याद करना सीखा था। एक ज्योतिषी होने के नाते मैं हमेशा रमन जी की किताब “My experiences with astrology” की सिफारिश करता हूं क्योंकि इस किताब में उस समय के भारत को बखूबी चरितार्थ किया गया है।
बी.वी रमन जी की जन्म कुंडली देखें तो उनकी कुंडली के 4 अक्ष पर बनने वाला गजकेसरी योग इस कुंडली की विशेषता है। लग्न पर न केवल शनि के लग्न भाव के स्वामी की दृष्टि पड़ रही है बल्कि नवम भाव के स्वामी शुक्र और पंचम भाव के स्वामी बुध की भी लग्न भाव पर दृष्टि है। कुंडली में शनि, चंद्रमा की युति के कारण उच्च के चंद्रमा को आंशिक रूप से कुछ हानि हो रही है और पुनर्फु हो रहा है किंतु गुरु की प्रबल दृष्टि के कारण वह दुष्प्रभाव भी दूर हो रहा है।
रमन जी के दादाजी बी सुब्रह्मण्यम राव ने एक बार भविष्यवाणी की थी कि बी.वी रमन जी एक दिन अपना खुद का नाम और पहचान बनाएंगें और जैसे कि हम सभी जानते ही हैं कि आज वह भारतीय ज्येातिष को पहचान और एक नया मुकाम दिलाने में सफल हुए हैं।
उनकी पुण्यात्मा को मेरी ओर से श्रद्धांजलि।
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