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जानिये कैसे केमद्रुम योग में निर्दोष चंद्र भी बनते हैं दोषकारी

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केमद्रुम योग चंद्र ग्रह के द्वारा बनने वाला योग है। भारतीय ज्योतिष में चंद्र का अत्यधिक महत्व है। ज्योतिष शास्त्र में अनेक ऐसे योग हैं जो चंद्र के द्वारा बनते है। गजकेशरी, चंद्र मंगल, अनफा, सुनफा, दुरुधरा, केमद्रुम जैसे अनेक योग चंद्र द्वारा उत्पन्न होते है यहां तक की चंद्र के प्रभाव के बिना राजयोग भी निष्फल होते हैं। चन्द्र के प्रभाव के कारण ही इसे प्राण कहा जाता है।

केमद्रुम योग के प्रभाव और समाधान

केमद्रुम चंद्र योगों में से एक हैं। केमद्रुम एक अशुभ योग माना जाता है| यह दोषकारी योग तब बनता है जब चंद्र के दूसरे और बारहवें स्थान पर कोई भी ग्रह न हो। इस योग में राहु केतु को छाया ग्रह होने के कारण स्वीकार नही किया जाता। केमद्रुम योग के कारण चंद्र स्वतन्त्र शुभ फल नही दे पाता। चंद्र के बुरे प्रभाव सामने आते है। यदि चंद्र पर कोई ग्रह प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है तो इस दोष का परिहार माना जाता है।

आपकी जन्म कुंडली में केमद्रुम योग है की नहीं देखें

यह योग चंद्र की एकांतिक स्थिति के कारण बनता है। चंद्र मन का कारक है। चंद्र के दूसरे व बारहवें स्थान पर ग्रह न होने का तात्पर्य है कि चंद्र पर किसी ग्रह का अधिकार नही है। ऐसे में चंद्र रूपी मन अपनी प्रकृति के अनुसार स्वछंद व दोषकारी प्रभाव रखता है। मन पर यदि संयम या नियंत्रण न किया जाये तो यह गलत मार्गो के द्वारा बर्बाद कर देता है। मन को नियंत्रित करना अत्यधिक जटिल व दुष्कर कार्य है।

अगर यह दुष्कर न होता तो हमारे ऋषि मुनियों को वन में जाकर तपस्या नही करनी पडती। जैन मुनियों को कपडे नहीं त्यागने पड़ते। अधिकतर सभी धर्म ग्रन्थों में मन को नियंत्रित करने के उपदेश दिये गये है। मन का स्वच्छंद होना उसी तरह से है जैसे बिना ब्रेक के अत्यधिक गति वाले वाहन, समुद्र की लहरों में बिना पतवार वाली नौका।

किसी भी समस्या के समाधान के लिये मिलिये हमारें ज्योतिषाचार्य जी से 

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