होली कब है, होलिका दहन का समय क्या है, इसके नियम क्या है, इसके बारे में जानने की इच्छा हम सभी के मन में होती है, आज इस लेख के द्वारा हम जानेंगे की वर्ष 2019 में होली का महापर्व किस दिन है, होलिका दहन का समय क्या है, इस त्यौहार का पौराणिक महत्व क्या है।
होली का त्यौहार पूरे भारतवर्ष में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व भारत के अलावा कई अन्य देशों में भी बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह आनन्द और उल्लास का पर्व है। पीले, नीले, हरे, काले, गुलाबी रंगों से रंगे गाल इस माहौल को और भी खुशनुमा बना देते है। इस पर्व की यह खासियत है की इस दिन लोग अपनी शत्रुता को भूलकर मित्रता की ओर हाथ बढ़ाते है। सांस्कृतिक महत्व के साथ साथ इस पर्व का धार्मिक महत्व भी है।
होली कब मनाई जाती है
होली हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसको वसंतोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। खेलने वाली होली या धुलेंडी पूर्णिमा के अगले दिन चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है।
होली की पौराणिक कथा
होली मनाने के पीछे हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की कथा सबसे लोकप्रिय है।
प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने दिन रात तपस्या कर भगवान ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया था कि इस संसार का कोई भी जीव-जंतु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसका अंत नहीं कर सकता। न वो रात में मरेगा और न ही दिन में, न पृथ्वी पर न आकाश में, न घर में न बाहर, यहाँ तक की किसी भी शत्रु से उसका वध नहीं होगा।
ऐसा वरदान ब्रह्माजी से पाकर वो बहुत ही निरंकुश बन बैठा, उस पर अंकुश लगाना मुश्किल हो गया। ऐसे राक्षस के यहाँ प्रल्हाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ। प्रल्हाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी।
हिरण्यकश्यप को प्रल्हाद की इस विष्णु भक्ति को देखकर बहुत ही नफरत सी होने लगी और उसने प्रल्हाद को आदेश दिया कि, वह उसके अतिरिक्त किसी और की स्तुति या प्रशंसा ना करे परन्तु विष्णु भक्त प्रल्हाद कहा मानने वाला था, वो तो दिन-रात विष्णु के गुणगान करता था। गुस्से में आकर हिरण्यकश्यप ने प्रल्हाद को जान से मारने की ठान ली। प्रल्हाद को जान से मरने के लिए हिरण्यकश्यप ने कई रास्ते अपनाए परन्तु हर बार भगवान विष्णु ने प्रल्हाद की जान बचाई, उसको एक खरोंच तक नहीं आने दी।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान मिला था। इसी का फायदा उठाते हुए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से विष्णु भक्त प्रल्हाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई।
होलिका छोटे बालक प्रल्हाद को अपनी गोद मे बिठाकर जलाकर मारने के उद्देश्य से आग में जा बैठी, उसके बाद चमत्कार हुआ प्रल्हाद की जगह होलिका स्वयं ही जल गयी और भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद की जान बच गयी तभी से होली का यह पावन पर्व मनाने की प्रथा प्रचलित हुई।
होलिका दहन
होलिका दहन प्रत्येक वर्ष फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को होता है। यह पर्व हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रल्हाद की विष्णु भक्ति को समर्पित है, जिसके अंतर्गत सत्य और अच्छाई की जीत हुई।
इसके पश्चात हिरण्यकश्यप की जीवन लीला ख़त्म करने के लिए स्वयं विष्णु भगवान ने नरसिंह अवतार धारण कर गोधूली समय अर्थात (सुबह और सायंकाल के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप का वध किया।
आइए जानते है होली के शुभ मुहूर्त और तिथि के बारे में
होलिका दहन 2019 में 20 मार्च बुधवार को है।
होलिका दहन मुहूर्त- रात्रि 20:58 से 24:23 तक
होलिका दहन भद्रा विचार
भद्रा पूंछ – 17:34 से 18:35 तक
होलिका दहन के नियम
धर्मशास्त्रों के अनुसार होलिका दहन के पूर्व नीचे दिए गए तीन नियमों का पालन करना जरुरी होता है।
1- होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ही हो
2- रात का समय हो
3- भद्रा बीत चुकी हो।
रंगवाली होली
होलिका दहन के दूसरे दिन रंगवाली होली मनाई जाती है, जिसको धुलेंडी के नाम से भी जाना जाता है। यह श्री राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम की याद में भी मनाई जाती है।
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