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शुक्रवार के दिन ये काम करने से मिलेगी मां लक्ष्‍मी की कृपा

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शुक्रवार का दिन मां लक्ष्‍मी को समर्पित है। जिन लोगों कोो धन की कमी है उन्‍हें शुक्रवार के दिन मां लक्ष्‍मी और संतोषी माता का पूजन करने से लाभ होता है। जो लोग धन की कामना रखते हैं उनकेे लिए शुक्रवार का दिन अत्‍यंत महत्‍व रखता है। इस दिन मां लक्ष्‍मी की पूजा करने से वे शीघ्र ही प्रसन्‍न होती हैं और धन-धान्‍य का आशीर्वाद देती हैं। इस दिन व्रत करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। शुक्रवार के दिन मां संतोषी का व्रत-पूजन किया जाता है। माता के पूजन में कथा भी सुनने का विधान है। मां संतोषी की कथा इस प्रकार है -:

व्रत विधि

प्रात: काल स्नानादि से निवृत्‍त होकर  एकान्त स्थान पर माता संतोषी की मूर्ति के पास किसी बड़े पात्र में शुद्ध जल भरकर रखें। जल भरे पात्र पर गुड़ और चने से भरकर दूसरा पात्र रखें और पूजन करें।

इसके पश्चात् संतोषी माता की कथा सुनें। तत्पश्चात् आरती कर सभी को गुड़-चने का प्रसाद बांटें। अंत में बड़े पात्र में भरे जल को घर में जगह-जगह छिड़क दें तथा शेष जल को तुलसी के पौधे में डाल दें। इसी प्रकार 16 शुक्रवार का नियमित उपवास रखें।

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शुक्रवार व्रत कथा

एक बुढ़िया थी। उसका एक ही पुत्र था। बुढ़िया पुत्र के विवाह के बाद बहू से घर के सारे काम करवाती, परंतु उसे ठीक से खाना नहीं देती थी। यह सब लड़का देखता पर माँ से कुछ भी नहीं कह पाता। बहू दिनभर काम में लगी रहती-उपले थापती, रोटी-रसोई करती, बर्तन साफ करती, कपड़े धोती और इसी में उसका सारा समय बीत जाता।

काफी सोच-विचारकर एक दिन लड़का माँ से बोला- `माँ, मैं परदेस जा रहा हूँ।´ माँ को बेटे की बात पसंद आ गई तथा उसे जाने की आज्ञा दे दी। इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला-`मैं परदेस जा रहा हूँ। अपनी कुछ निशानी दे दे।´ बहू बोली- `मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है। यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगी। इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई।

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पुत्र के जाने बाद सास के अत्याचार बढ़ते गए। एक दिन बहू दु:खी हो मंदिर चली गई। वहाँ उसने देखा कि बहुत-सी स्त्रियाँ पूजा कर रही थीं। उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं। इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है।

स्त्रियों ने बताया- शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लेना तथा सच्चे मन से माँ का पूजन करना चाहिए। खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देना। एक वक्त भोजन करना।

व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी। माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया। कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया। उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जा अन्य स्त्रियों से बोली- `संतोषी माँ की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है´ अन्य सभी स्त्रियाँ भी श्रद्धा से व्रत करने लगीं। बहू ने कहा-`हे माँ! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूँगी।´

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अब एक रात संतोषी माँ ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं। रुपया भी अभी नहीं आया है। उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही तथा घर जाने की इजाजत माँगी। पर सेठ ने इनकार कर दिया। माँ की कृपा से कई व्यापारी आए, सोना-चाँदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए। कर्ज़दार भी रुपया लौटा गए। अब तो साहूकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी।

घर आकर पुत्र ने अपनी माँ व पत्नी को बहुत सारे रुपए दिए। पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की सारी तैयारी की। पड़ोस की एक स्त्री उसे सुखी देख ईष्र्या करने लगी थी। उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर माँगना।

उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे खटाई के लिए मचल उठे। तो बहू ने पैसा देकर उन्हें बहलाया। बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली-खटाई खरीदकर खाने लगे। तो बहू पर माता ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे। तो किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली खटाई खाई है तो बहू ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया।

संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका टैक्स राजा ने माँगा था। अगले शुक्रवार को उसने फिर विधिवत् व्रत का उद्यापन किया। इससे संतोषी माँ प्रसन्न हुईं। नौ माह बाद चाँद-सा सुंदर पुत्र हुआ। अब सास, बहू तथा बेटा माँ की कृपा से आनंद से रहने लगे।

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