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10 नवंबर से शुरु होंगें एकादशी, आयेगा धन ही धन

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10 नवंबर, गुरुवार

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10 नवंबर, गुरुवार को कार्तिक शुक्‍ल एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्‍णु इस दिन निद्रा से जागते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु साल के चार माह शेषनाग की शैय्या पर सोने के लिये क्षीरसागर में शयन करते हैं तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को वे उठ जाते हैं। इसलिए इसे देवोत्थान, देवउठनी या देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।

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मांगलिक कार्यों की शुरुआत

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भगवान विष्‍णु के जागने के बाद अन्‍य देवता गण भी निद्रा ये जाग उठते हैं। देवप्रबोधिनी का अर्थ है – स्‍वयं में देवत्‍व को जगाना। प्रबोधिनी एकादशी से ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। प्रबोधिनी एकादशी का तात्पर्य एकमात्र यह है कि व्यक्ति अब उठकर कर्म-धर्म के रूप में देवता का स्वागत करें। भगवान के साथ अपने मन के देवत्व अर्थात् मन को जगा दें।

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तुलसी का महत्‍व

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प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्‍णु की पूजा में तुलसी के पत्तों का अत्‍यंत महत्‍व है। कई जगह इस दिन तुलसी विवाह भी कराया जाता है। इस विवाह में विष्‍णु जी के स्‍वरूप शालिग्राम जी और तुलसी का विवाह कराया जाता है।

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व्रत का महत्‍व

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देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन व्रत करने से अश्‍वमेघ तथा सौ यज्ञों जितना फल प्राप्‍त होता है। इस दिन व्रत रखने से पाप का नाश होता है। प्रबोधिनी एकादशी के दिन जप, तप, गंगा स्नान, दान, होम आदि करने से अक्षय फल प्राप्त होता है।

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