गणेश जी का वाहन
किसी भी शुभ काम की शुरुआत से पहले मंगलकारी गणेश भगवान का नाम लिया जाता है। भगवान गणेश का वाहन चूहा है। गणेश जी को बुद्धि का देवता माना जाता है तो वहीं चूहा तर्क-वितर्क का प्रतीक माना गया है। इसी कारण से गणेश जी ने चूहे को अपना वाहन चुना।
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गणेश पुराण में है उल्लेख
गणेश पुराण में उल्लेख है कि हर युग में गणेश जी का वाहन बदलता रहता है। सतयुग में गणेश जी का वाहन सिंह है। त्रेता युग में गणेश जी का वाहन मयूर है और वर्तमान युग यानी कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है। चूहा द्वापर युग में उनका वाहन था।
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चूहा कैसे बना गणेश जी का वाहन
एक बार महर्षि पराशर अपने आश्रम में ध्यान अवस्था में थे। तभी वहां कई चूहे आए और उनका ध्यान भंग करने लगे। उन चूहों ने आश्रम को तहस-नहस कर दिया। इससे महर्षि का ध्यान भंग हो गया। वह इस समस्या के समाधान के लिए गणेश जी का स्मरण करने लगे। गणेश जी को जब महर्षि की समस्या के बारे में पता चला तो उन्होंने सभी चूहों को वहां से भगाने के लिए अपना पाश( रस्सी नुमा शस्त्र) फेंका।
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कथा
आश्रम में एक चूहा ऐसा था जो सबसे ज्यादा उत्पात मचा रहा था। पाश ने उस चूहे को बांधकर गणेशजी के सामने उपस्थित किया। विशालकाय रूप के गणेशजी को देख वह चूहा उनकी उपासना करने लगा। गणेश जी ने उस चूहे से कहा, अब तुम मेरी शरण में हो तुम जो चाहे मांग सकते हो।
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चूहे में अहंकार
गणेश जी की बातों को सुन चूहे में अहंकार पैदा हो गया। उसने गणेश जी से कहा, मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, यदि आपको कुछ चाहिए तो आप मुझसे मांग सकते हैं। गणेश जी उसकी बात सुनकर प्रसन्न हुए और चूहे से कहा, मूषक यदि तुम कुछ देना चाहते हो तो मेरे आजीवन वाहन बन जाओ।
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घमंड चूर-चूर
जब गणेशजी, चूहे पर बैठे तो उसका शरीर, गणेशजी के वजन को सह नहीं पाया और उसका घमंड चूर-चूर हो गया। उसने अपने इस कृत्य के लिए माफी मांगी। तब गणेश जी ने अपना वजन कम किया और इस तरह आज तक गणेश जी का वाहन वही चूहा है, जो इस कहानी में वर्णित है।
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